आज फिर से खोज रही हूँ ख़ुद को
समय दे रही हूँ अपनी कलम को
ज़िन्दगी की कश्मकश में भटक गई थी
फिर से गढ़ रही हूँ उस अधूरे ख्वाब को
झूठी हँसी के चलते दिल से मुस्कुराना भूल गई थी
सब की भावनाओं को समजते खुद की आशाएँ भूल गई थी
बनना चाहती थी कभी मैं भी इंजीनियर डॉक्टर
पर ,घर की चार दिवारी में क़ैद हो कर रह गई थी
ऐसा नहीं है कि कुछ पाया नहीं
पर जो खोया वो दिल से गया नहीं
लम्हे बहुत से आये हँसने मुस्कुराने के
पर वो टेस दिल से कभी कम हुई नहीं
जी करता था तोड़ दूँ इन रस्मो को
जी करता था छोड़ दूँ कसमो को
घोट दूँ गला इन बेड़ियों का
और काट दूँ इन झूठे जंजालों को
फिर याद आती है माँ की वो बात
इस घर से डोली आई है उस घर से अर्थी आएगी
और फिर सुबह उठ जाती हूँ झूठी मुस्कराहट के साथ
जब देखूं पीछे तो एक सुना सा रास्ता दीखता है
अंधेरी गलियों में ना कोई अपना लगता है
एक अरसा लंबा सफर ही था गुज़रा
जो किसी भ्रम में बिताया हुआ जमाना लगता है
Two of your lines touched my heart
ऐसा नहीं है कि कुछ पाया नहीं
पर जो खोया वो दिल से गया नहीं
These two lines summarises everything in this writeup
Brilliant
Welcome back miki
एक अरसा लंबा सफर ही था गुज़रा
जो किसी भ्रम में बिताया हुआ जमाना लगता है
Vaise dekha jaye to aaj bhi ek bhram hi hai
Kal bhi bhram hi tha
Aur Kal bhi bhram hi rahega
Bas jis pal ko dil se jee liya tumne shayad vahi hakeekat hoga❤
Luv u virus miki
Happy reading readers
Yours loving warrior
Naina
बहुत प्यारी कविता है!
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Wonderful
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