लो जनाब, अब तो हो चले
नोटबंदी को पूरे दो साल
हो गया देश और अर्थव्यवस्था
का बुरे से भी बुरा हाल।।
ये हम नहीं कहते
कहे हैं समाचार सारे अब
कहे हैं ‘उर्जित’ भी अब भरी ऊर्जा से
बजा के घन्टे, ठोक के ताल ।।
# एक ही झटके में
जैसे मुर्गे को किया जाता है हलाल
साहब ने छीन लिया सब कुछ
और कर दिया कंगाल।।
# कोई समझ ही न पाया था तब
उस छलिये की ये चाल
ले ली उसने सभी की जमा पूंजी
ले लिया सारा जमा माल।।
# ऐसा बिछाया उसने
अपनी माया का ये जाल
कि हो गये ढेर सभी
जो कहलाते थे गुदड़ी के लाल।।
# राजन साहब कहते ही रहे
इस निर्णय को दो अभी टाल
मगर ये तो टूट पड़े उन्हीं पे
बन के महा…काल ।।
# क्या व्यापारी क्या किसान
मजदूर भी हुए बदहाल।
घर की गृहणी की भी साहब
गल नहीं रही अब दाल ।।
# नहीं बख्शा किसी को भी,
उधेड़ दी इसने सबकी खाल ।
जो थोड़े बच गये थे तब,
पिचक गये अब उनके भी गाल ।।
नोटबंदी से जनमानस को हुई असहाय पीड़ा और अपूर्ण क्षति को शब्दों में बाँधने का एक तुच्छ सा प्रयास…