सोचा था कि देश मेरा, ऐसा बनेगा,
सबसे महान् (जैसा था पहले), वैसा बनेगा।
मगर ये हरगिज़ ही न था ज़हन में,
के खुदा से बढ़कर ताकत और पैसा बनेगा।।
#सोचा था कि देश मेरा
फिर चिड़िया बनेगा सोने की,
ज़रूरत ही न होगी कभी
किसी भी जन को रोने की।।
#मेरे मुल्क में पूजी जाती है
मिट्टी भी कोने कोने की,
पर क्यों दरकार पड़ी इसे
कर्जे़ के पत्थर ढोने की।।
#कुछ लोग सियासत कर कर के
धमकी देते चुप होने की,
ज़रूरत क्या थी आख़िर इनको
नफ़रत के काँटे बोने की।।
#है वक्त अभी भी सम्भल जाओ
घड़ी है ये पाप धोने की,
है घड़ी ये प्रेम और प्रीत वाली
सुंदर सपने सन्जोने की।।