नवंबर आठ को इक दानव* आया
शुरु शुरु में खूब डराया
बड़े बड़ोंं को थोड़ा सताया
छोटों को तो वो मार के खाया..
वाह री कुदरत तेरी कैसी माया
क्या तुझे ज़रा भी मर्म न आया
जो थोड़ा बहुत था बचा बचाया
तूने तो वो सब निकलवाया..
बड़ी मुुुश्कि्ल से था कुुुछ ख्वाब सजाया
हर गृहणी ने था जो थोड़ा बचाया
तूने अपनी चतुराई (छल) से
उस बचत को क्या ख़ूब निकलवाया..
नेता श्री ने चीख चीख के
मंच से क्या खूब फ़रमाया
मित्रों 50 दिन दो साथ मेरा
ले आउंगा काली माया (काला धन)..
हम सबने दिया साथ उस ठग का
हर इक जन उसके जाल (बात) में आया
और उसने हम भोले लोगों से
इतना बड़ा पहाड़ खुदवाया..
लच्छेदार बातों से भाया
वो बनकर मदारी आया
बनाके हम सभी को बन्दर
उसने हमें दिनरैन नचाया..
उलझा के अपनी लुभावनी बातों में
हर शख़्स को उसने क्या ख़ूब भरमाया
ख़ुदवाता रहा पहाड़ वो रात दिन
अन्त में एक छोटी चुहिया निकलवाया…!!!
दानव = नोटबंदी
नेता श्री = गरीब माँ का अमीर बेटा जो प्रति सप्ताह कई करोड़ रुपये कपड़ों पे ख़र्च करे है…
पहाड़ = आम जनता ने जो कष्ट सहे
छोटी चुहिया = कुछ हाथ न आया, सब व्यर्थ ही साबित हुआ…
Waaaahhh … Behtarin
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