Dear All,
On the May Day, the day commemorating the importance of physical labour and giving the due required to our brethrens involved in the rade i’d like to post here one of the poem written by Shri Ramdhari Singh Dinkar Ji , which used to feature in our school text books.
मैं मजदुर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये,
अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा;
धरती को सुन्दर करने की ममता में,
बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा.
अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ;
युगों-युगों से इन झोपडियों में रहकर भी,
औरों के हित लगा हुआ हूँ महल सजाने.
ऐसे ही मेरे कितने साथी भूखे रह,
लगे हुए हैं औरों के हित अन्न उगाने;
इतना समय नहीं मुझको जीवन में मिलता, अ
पनी खातिर सुख के कुछ सामान जुटा लूँ.
पर मेरे हित उनका भी कर्तव्य नहीं क्या? मेरी बाहें जिनके भारती रहीं खजाने;
अपने घर के अन्धकार की मुझे न चिंता, मैंने तो औरों के बुझते दीप जलाये.
मैं मजदुर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये.
Happy Reading
Prankies
Read more about Sri Ramadhar Singh Dinkar ji (wikipedia link)
and thanks prankies for compiling this awesome read on labours day.
We truely need to get identified with their pain , these are people amongst us.
Keep scribbling Prankies
Happy reading readers
Yours loving warrior
Naina